दिनांक 24 अप्रैल 2022 ई०को इतिहास विभाग डीएवी पी०जी०कालेज में विरासत क्लब के आयोजन के तहत ‘’73 वा संविधान संसोधन और पंचायती राज व्यवस्था’’ विषय पर एकल ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ तिब्बतन स्टडीज के स्कूल ऑफ़ सोशल साइंस के अथिति व्याख्याता डॉ. पूर्णिमा त्रिपाठी ने भारत में पंचायती राज व्यवस्था के प्रार्दुभाव पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1992 ई० में संविधान के 73 वें संविधान संसोधन द्वारा इसे और मजबूती मिली है। इस संशोधन में इसे सुव्यवस्थित एवं कानूनी आधार दिया गया है। जिला परिषद या जिला पंचायत, ये विभिन्न विकास योजनाओं के कार्यान्वयन के सम्बन्ध में सरकार को आवश्यक सलाह भी देती है। इसमें महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विशेष प्रतिनिधित्व का प्रावधान है। डॉ॰पूर्णिमा त्रिपाठी ने बताया कि भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्थानीय सरकार की मुख्य धुरी के रूप के रूप में कार्य करती है। भारत में पंचायती राज व्यवस्था ही राज्य और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को संचालित करने में अपनी मुख्य भूमिका निभा रही है। अतः योग्य प्रतिनिधि का चुनाव करना हम सभी का मुख्य दायित्व होना चाहिए, इससे देश में पंचायती राज व्यवस्था को और अच्छी गति मिल सके।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ॰सत्यदेव सिंह ने किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ॰ प्रतिभा मिश्रा ने किया, स्वागत डॉ॰लक्ष्मी कांत सिंह, एवं धन्यवाद ज्ञापन विरासत क्लब के समन्वयक डॉ॰ शोभनाथ पाठक के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में विभाग के डॉ॰प्रतिभा मिश्र, डॉ॰संजय कुमार सिंह, डॉ॰शिव नारायण, डॉ॰ शशिकान्त, उपस्थित थे। इसके साथ ही मुख्य रूप से प्रोफेसर मधु सिसोदिया, डॉ॰ सुषमा मिश्रा, डॉ॰हसन बानो, डॉ॰प्रतिमा गोंड सहित विभाग के छात्र – छात्राओं ने इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये l
दिनांक 8 अप्रैल 2021 ईo को इतिहास विभाग डीएवी पी०जी०कालेज में विरासत कल्ब के आयोजन के तहत “आपदा एवं महामारी: एक ऐतिहासिक पुनर्वलोकन” विषय पर एकल आनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर इतिहास विभाग कि डॉ० प्रतिभा मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि भारतीय समाज ने बीते इतिहास में कई महामारियों का सामना किया है। महामारी ज्यादातर बीमारियों के प्रकोप में आने से होती हैं, जो मानव से मानव संक्रमण के प्रसार के परिणामस्वरूप व्यापक हो जाती है। मानव इतिहास में कई महत्वपूर्ण महामारी दर्ज की गई हैं। इनमें चेचक, हैजा, प्लेग, डेंगू, इन्फ्लूएंजा, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (SARS) और तपेदिक शामिल हैं। इन्फ्लुएंजा महामारी अप्रत्याशित लेकिन आवर्ती घटनाएं है। इसके पूरी दुनिया के समाज पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। हर महामारी ने मानव जीवन को नुकसान पहुचाया हैं।
समाज के आर्थिक विकास को प्रमुख रूप से प्रभावित किया हैं। हाल के वर्षों में कई बीमारियों के पैमाने पर प्रकोप देखे गए हैं l जैसे- हंता वायरस, पल्मोनरी सिंड्रोम, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम, H5NI इन्फ्लूएंजा, HINI, मध्य पूर्व श्वसन सिंड्रोम और इबोला वायरस रोग महामारी। वर्तमान में हम COVID-19 महामारी का सामना कर रहे हैं जिसे 21″सदी का पहला बड़ा संकट माना जा सकता है यह पूरी दुनिया को तीव्रता से प्रभावित कर रहा है। कोरोना वायरस महामारी के कारण पिछले महामारियों में समाज विज्ञान के लोगो की काफी रूचि बढ़ गई है और विद्वानो द्वारा इस लगातार वर्तमान महामारी की तुलना पिछले ऐतिहासिक महामारियों से करने की कोशिश की जा रही है।
इस आनलाइन व्याख्यान कार्यक्रम की अध्यक्षता महविद्यालय के प्राचार्य डॉ०सत्यदेव सिंह ने किया। कार्यक्रम का संचालन विरासत क्लब के समन्वयक डॉ० शोभनाथ पाठक द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ० शिवनारायण ने किया। कार्यक्रम में विभाग के सभी शिक्षक गण डा. विनोद कुमार चौधरी, डा. संजय कुमार सिंह, डा. लक्ष्मीकान्त सिंह उपस्थित थे। इसके साथ ही कार्यक्रम में विभाग के छात्र –छात्राओं ने भी इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
दिनांक 25 अगस्त 2020 ई०को इतिहास विभाग डीएवी पी०जी० कालेज में स्टूडेंट क्लब विरासत के तत्वाधान में आयोजित आनलाइन व्याख्यान आयोजन के तहत ‘’भारत में संसदीय प्रजातंत्र की उपादेयता’’ विषय पर एकल व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभाग के अध्यक्ष डॉ०विनोद कुमार चौधरी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि भारत में संसदीय प्रजातंत्र की उपादेयता के संदर्भ में निम्न बिन्दुओं को महत्वपूर्ण माना जा सकता है ।
संसद में चुनाव के माध्यम से प्रतिनिधित्व इसलिए तय किया जाता है की प्रतिनिधित्व में सामाजिक और सांस्कृतिक-विविधिता अधिक हो।
संसदीय-प्रजातंत्र इसलिए भी आवश्यक और महत्वपूर्ण होता है कि संसदीय प्रजातंत्र में कार्यपालिका संसद के प्रति उतरदायी होती है। चूंकि कार्यपालिका की शक्तियां एक व्यक्ति के हाथ में निहित होती है, अतः उसे उतरदायी नहीं बनाया जायेगा तो निरंकुशता बढ़ने की संभावना बनी रहती है। अतः यह जरूरी है की उसे उत्तरदायी बनाया जाये।
संसदीय-प्रजातंत्र के लिए संविधानवाद आवश्यक है ।
संसदीय-प्रजातंत्र में असहमति व्यक्त करने का अधिकार सभी को प्राप्त होता है, भारत जैसे देश में जहां बहुत से धर्मं,संस्कृति,भाषा इत्यादि के लोग रहते है, वहां असहमति की सम्भावना अधिक होती है। यदि उन असहमतियों को दबाने की कोशिश की जाएगी तो वह संसदीय-प्रजातंत्र बेहतर विकास के मॉडल के साथ नहीं जुड़ पाएगा। अतः स्पष्ट है भारत में संसदीय प्रजातंत्र बरक़रार रहे और उसके संस्थाओ को सुरक्षित रखा जाये।