डीएवी पी जी कॉलेज, वाराणसी में रचनात्मक लेखन के अल्पकालिक पाठ्यक्रम का उद्घाटन किया गया। अतिथियों ने भाषा की सृजनात्मक सम्भावनाओं पर साझा संवाद किया । कोई भी भाषा आपके विकास में बाधक नही बन सकती है, बशर्ते अपने दिल की भाषा का चुनाव करे। उक्त बातें बुधवार को वाराणसी परिक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक के सत्यनारायण ने डीएवी पीजी कॉलेज के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में आयोजित ओरिएंटेशन कार्यक्रम सह रचनात्मक लेखन कौशल प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के शुभारंभ के अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि कही। आईजी जोन के सत्यनारायण ने कहा कि जब हम अपने अंतरात्मा की आवाज पर रास्ता चुनते है तो हमे आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता है। इस समाज मे आपके लिए कोई प्रतिस्पर्धा नही है, बस हमे सामने देखना है। खुले विचारों के साथ जिये और चुनौतियों को अवसर के रूप में स्वीकार करें। उन्होंने यह भी कहा कि सिविल सेवा में हिन्दी माध्यम और हिन्दी साहित्य दोनों में काफी अवसर है। के सत्यनारायण ने प्रतिभागियों को अनुवाद कर्म की बारीकियां बताई और सृजन परिदृश्य पर बात की। अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के डॉ. सत्यदेव सिंह ने कहा कि विद्यार्थी जीवन मे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगन की आवश्यकता होती है। रचनात्मक लेखन में प्रवीणता लानी है तो किताबो से दोस्ती करे और छोटी – छोटी कविता, कहानियां लिखने का प्रयास करे। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि हिंदी विभाग ने मेरे संकल्प को मजबूती दी है और बेहतर कोशिश के लिए यह पहल की है। मेरी शुभकामना है कि यह प्रशिक्षण शिविर रचनात्मक नवाचार को प्रोत्साहित करेगा।विशिष्ट वक्ता महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के प्रोफेसर राजमुनि ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक प्रतिभा अवश्य होती है, हमे उस हुनर को पहचान कर आगे बढ़ना है। इस जीवन मे असंभव जैसा कुछ नही है। कार्यक्रम के शुभारंभ में बीज वक्तव्य देते हुए प्रो राकेश कुमार राम ने लेखन प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्देश्य और प्रस्तावित विन्दुओं की सिलसिलेवार चर्चा की। उन्होंने प्रस्तावित कोर्स के महत्त्व को बताते हुए कहा कि हमारी कोशिश रचनात्मक प्रतिभाओं की सृजनात्मकता को संवारना है। इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत प्रोफेसर सत्यगोपाल जी ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया। डॉ. राकेश कुमार द्विवेदी ने केदारनाथ सिंह की कविता ‘धानो का गीत’ प्रस्तुत किया। संचालन प्रोफेसर समीर कुमार पाठक एवं स्वागत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश कुमार राम ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रो. मिश्रीलाल, डॉ हसन बानो, डॉ संजय कुमार सिंह,प्रो.विक्रमादित्य राय, प्रो.विनोद कुमार चौधरी, प्रो. प्रशांत कश्यप, डॉ. हबीबुल्लाह, डॉ. इंद्रजीत मिश्रा, डॉ. अस्मिता तिवारी, डॉ. विश्वमौली, डॉ. नीलम सिंह आदि सहित बड़ी संख्या में अध्यापक एवं छात्र – छात्राएं उपस्थित रहे। हिंदी विभाग के छात्रों ने इस कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी की।
माँ मैं कविताएं अच्छी लिखने लगा हूं, टीचर कहते है मैं आगे जाकर टैगोर जैसा कवि बन सकता हूँ, मुझे टैगोर बनना है माँ, मुझे और पढ़ना है। बेटा… आगे पढ़ना है तो अपने पापा से पूछ, मुझसे नही और टैगोर बनने से पेट नही भरता है। उक्त भावपूर्ण दृश्य शनिवार को जीवन्त रहा डीएवी पीजी कॉलेज के हिन्दी विभाग एवं सांस्कृतिक समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एकल नाट्य “माँ मुझे टैगोर बना दे” की प्रस्तुति के अवसर पर। जम्मू से आये प्रख्यात रंगकर्मी लक्की गुप्ता ने पंजाब के मशहूर कथाकार मोहन भंडारी द्वारा रचित नाटक की भावपूर्ण प्रस्तुति दी, जिसे देख हॉल में उपस्थित सभी की आँखे भर आयी। नाटक में एक बच्चे की कहानी को बड़े ही मार्मिक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है जिसके शिक्षक उसकी प्रतिभा देख उसे टैगोर जैसा कवि बनने की उम्मीद करते है। बच्चा भी मुफलिसी में जीने के बावजूद किसी तरह दसवीं पास कर लेता है लेकिन 12 वीं की पढ़ाई के लिए उसे आगे दूसरे शहर जाना है और उसके लिए उसके परिवार की माली हालत साथ नही देती। फिर भी पिता किसी तरह उसके पढ़ाई का इंतजाम करता है लेकिन दुर्भाग्य वश पढ़ाई के दौरान ही उसके पिता की मजदूरी करते वक़्त हादसे में मौत हो जाती है और बच्चे की पढ़ाई अधूरी रह जाती है, क्योंकि अब उसे पढ़ाई नही करनी अब उसे घर चलाने के लिए काम करना होगा। एकल नाटक में रंगकर्मी लक्की गुप्ता के भाव और संवाद ने लोगों को द्रवित कर दिया तो खूब तालियां भी बटोरी। पिछले दस वर्षों से देश के विभिन्न राज्यों में नाटक की प्रस्तुति दे रहे लक्की गुप्ता की यह 1096 वीं प्रस्तुति थी। इस अवसर पर हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश कुमार राम एवं सांस्कृतिक समिति के समन्वयक प्रोफेसर अनूप कुमार मिश्रा ने लक्की गुप्ता को स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र प्रदान कर उनका स्वागत किया। एकल अभिनय कार्यक्रम का संयोजन प्रोफेसर समीर कुमार पाठक ने एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राकेश कुमार द्विवेदी ने दिया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रोफेसर मिश्री लाल, प्रोफेसर ऋचारानी यादव, डॉ. हबीबुल्लाह, डॉ. संजय कुमार सिंह, प्रोफेसर पूनम सिंह, डॉ. संगीता जैन, डॉ. मीनू लाकड़ा, डॉ. हसन बनो, डॉ. अस्मिता तिवारी, डॉ. प्रतिभा मिश्रा, डॉ. सुषमा मिश्रा सहित बड़ी संख्या में अध्यापक एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।
प्रेमचन्द जयंती के अवसर पर हिंदी विभाग, डीएवी पीजी कॉलेज के छात्र समूह द्वारा आयोजित प्रेमचन्द के गांव लमही भ्रमण और प्रेमचन्द को याद करने का अर्थ विषयक चर्चा में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ राकेश कुमार राम के नेतृत्व में साहित्य अनुरागी अध्यापकों और विद्यार्थियों के समूह ने प्रेमचन्द की स्मृति में उनके घर और गांव का भ्रमण किया और रचनात्मक सम्वाद के मार्फ़त प्रेमचन्द की महत्ता का स्मरण किया।
आज की चर्चा में विद्यार्थियों के समूह ने ग्रामीण जनों से बात करके प्रेमचन्द की साहित्यिक प्रतिछवियों की पड़ताल की और प्रेमचन्द की स्मृति पर सार्थक चर्चा आयोजित की। चर्चा की शुरुआत करते हुए डीएवी पी जी कॉलेज छात्र अध्ययन समूह छात्रों ने प्रेमचन्द को आज के समय समाज के आलोक में समझने समझाने की जरूरत पर बल दिया। विद्यार्थियों ने ग्रामीणों जनों के साथ कठपुतली नृत्य के माध्यम से प्रेमचन्द की कलात्मक प्रस्तुति का लुत्फ लिया। प्रेमचन्द को याद करने का अर्थ विषयक चर्चा में सभी विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए डॉ राकेश कुमार राम ने कहा कि प्रेमचन्द को याद करना आज के दौर में सामाजिक विषमता और आर्थिक संकट से जूझ रहे मध्यवर्ग के संघर्ष को याद करना है। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि प्रेमचन्द जातीय उत्पीड़न और आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले लेखक हैं इसलिए उनकी चेतना को आज के संदर्भ में विचार करने की जरूरत है।
चर्चा में शामिल उदित त्रिपाठी , आदित्य शुक्ल , दीपक कुमार राय ने प्रेमचन्द के उपन्यासों को भारतीय ग्रामीण यथार्थ का महाआख्यान रचने
और जातीय जागरण का उदघोष करने वाला पाठ बताया।
उनकी कलात्मक कहानियों की मार्मिकता पर बात करते हुए विवेकानंद मिश्र, ने पूस की रात, सद्गति, ठाकुर का कुंवा और कफ़न को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का समाजशास्त्रीय लेखा जोखा भी है और सामाजिक पतनशीलता के खिलाफ मनुष्यता का जयघोष करने वाली कहानियों के रूप में रेखांखित किया। संवाद कार्यक्रम में हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ समीर कुमार पाठक ने प्रेमचन्द को नए ढंग से पढ़ने की बात की । उन्होंने प्रेमचन्द को हिंदी समाज को वैचारिक तार्किकता और सामाजिक तरक्की पर बल देने वाला महत्त्वपूर्ण लेखक बताया। प्रेमचन्द स्मृति यात्रा में विद्यार्थियों के समूह ने उनके पैतृक घर और उनकी स्मृति में स्थापित शोध केंद्र का मुआयना करके प्रेमचन्द सम्बन्धी अकादमिक अध्ययन के विभिन्न संदर्भों को समझने की कोशिश की। हिंदी विभाग की तरफ से डॉ विश्वमौलि ने छात्र छात्राओं को प्रेमचन्द से जुड़ी स्मृतियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी और कहा कि प्रेमचन्द को याद करने का अर्थ है , होरी, सूरदास, मुन्नी, धनिया और बंशीधर जैसे सामान्य जनों के मूल्यबोध को बचाना। इस यात्रा में हिंदी विभाग के पूर्व छात्र उज्ज्वल कुमार सिंह ने सभी छात्रों का मार्गदर्शन किया और जयंती पर आयोजित होने वाले विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सबकी सामूहिक प्रतिभागिता सुनिश्चित की। प्रेमचन्द जयंती के अवसर पर डीएवी पीजी कॉलेज छात्र समूह से लमही में आए विभिन विद्वानों प्रो रामकीर्ति शुक्ल, प्रो वी के शुक्ल, प्रो आफताब अहमद आफ़ाक़ी, डॉ अभय कुमार ठाकुर , प्रो राधेश्याम दुबे, प्रो विजय बहादुर सिंह , प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो लालजी, प्रो ओ एन सिंह के विचारों सुना और सार्थक बातचीत की। डीएवी पीजी कॉलेज की इस अकादमिक यात्रा में विवेकानन्द मिश्र, नीरू, अमरनाथ कुमार, उदय भास्कर, नितीश कुमार, आदर्श पाण्डेय , भास्कर तिवारी, अर्पण क्रिकेट्टा, उदित त्रिपाठी, आदित्य शुक्ल, शिवम शुक्ल,दीपक राय की रचनात्मक भागीदारी ने कार्यक्रम को यादगार बना दिया। सभी छात्र-छात्राओं ने लमही भ्रमण के माध्यम से प्रेमचन्द के साहित्य सरोकार और सांस्कृतिक मूल्य को समझने की कोशिश की और आगामी सत्र में ऐसी यात्राओं की योजना बनाने की अपील की।
हिन्दी सिर्फ अध्ययन अध्यापन की भाषा तक सीमित नही है और ना ही यह परम्परागत रोजगार का साधन मात्र हैए हिन्दी प्राचीन भारतीय संस्कृति की पहचान है। उक्त बातें गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालयए गांधीनगर के कुलसचिव एवं हिन्दी अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष प्रोण् आलोक कुमार गुप्ता नें बुधवार को डीएवी पीजी काॅलेज के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में आयोजित आॅनलाइन ओरिएंटेशन व्याख्यान को बतौर मुख्यवक्ता सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने हिन्दी भाषा साहित्य के अध्ययन की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हिन्दी अब पहले से काफी समृद्ध और प्रभावी हो चुकी है। नए दृष्टिकोण में सिनेमाए टेलीविजनए बाजारए प्रबन्धन और विज्ञापन की बड़ी दुनिया में भी हिन्दी की आवश्यकता अनिवार्य हो चुकी है। समाचार पत्र एवं टीवी पत्रकारिता भी हिन्दी के छात्रों के लिए रोजगार का बड़ा साधन है।
अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डाॅण् सत्यदेव सिंह ने कहा कि भाषा साहित्य की समृद्धि पर ही राष्ट्र की समृद्धि निर्भर है। हिन्दी सिर्फ भाषा अथवा साहित्य का स्वरूप नही हैए बल्कि गौरव की अनुभूति कराती है।
वर्तमान में हिन्दी का ज्ञान योग्यता की अनिवार्य शर्त है। स्वागत विभागाध्यक्ष डाॅण् राकेश कुमार रामए संचालन डाॅण् समीर कुमार पाठक एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅण् राकेश कुमार द्विवेदी ने दिया। इस अवसर पर मुख्यरूप से डॉ मिश्रीलालए डॉ हबीबुल्लाहए डाॅण् मुकेश कुमार सिंहए डाॅण् अस्मिता तिवारीए प्रताप बहादुर सिंह आदि अध्यापक जुड़े रहे। तकनीकी सहयोग में उज्ज्वल कुमार सिंहए राजन कुमारए विद्या वैभव भारद्
महाविद्यालय में “विश्व मानवता की चुनौतियाँ और कबीर” विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का पहला दिन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ । महाविद्यालय के परम्पराओं के अनुरूप सेमिनार का उद्घाटन कुलगीत के साथ हुआ जिसे अंजलि वर्मा ने प्रस्तुत किया । ततपश्चात विषय प्रस्तावना के लिए हमने प्रो• सदानन्द शाही को सुना जिसमें उन्होंने उपभोग की संस्कृति का मनुष्य पर प्रभाव विषयक अपनी चर्चा की शुरुआत की । उन्होंने बताया कि कैसे आज के वर्तमान समय में भूख और सांस की चुनौती हमारे सम्मुख है । वह आगे बताते है कि माया पर कही गई कबीर की बातें उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाती है ।
कबीर ईश्वर में आनंद और आनंद में ईश्वर की बातें करते हैं, उक्त बातों के साथ आज के सत्र का विषय प्रस्ताव हमारे सामने उपस्थित किया। जिसके बाद प्रथम वक्ता के रूप में हमारे साथ नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर से हिंदी विभाग की प्रध्यापिका डॉ• सन्ध्या सिंह जी का व्यख्यान हुआ । जिसमें डॉ• सिंह ने कबीर के बारे में कहते हुए बताया कि कबीर महज एक नाम नहीं, परन्तु एक सम्पूर्ण क्रांति का नाम है । कबीर की प्रासंगिकता आज भी उनके लेखन की दिव्यता के आधार पर है । मनुष्य का नकलीपन ही मनुष्यता पर सबसे बड़ा खतरा है, जिसे डॉ• सिंह ने बड़ी ही प्राथमिकता के साथ उल्लेखित किया।सत्र के दूसरे वक्ता के रूप में आज के इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के प्रध्यापक डॉ• पीटर फ्रीडलैंडर ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किये । उन्होंने अपने व्याख्यान की शुरुआत कबीर की अस्मिता एवं व्यक्ति की निजी अस्मिता के सम्बंध से की । जहाँ उन्होंने बताया कि कबीर को देखने की सबकी अपनी अपनी दृष्टि है, अपना विचार है, अपने तर्क है । कबीर साहित्य के इतिहास पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि आज प्रश्न यह है कि आज हम कबीर को धार्मिक एवं राष्ट्रीय सीमाओं में बांधना चाहते है या उन्हें स्वतंत्र रूप में वैश्विक धरोहर के रूप में देखना चाहते है । उन्होंने बताया कि रबिन्द्रनाथ की पुस्तक “हंड्रेड पोयम्स ऑफ कबीर” के बाद कबीर वैश्विक कवि के रूप में उभरे एवं उनकी रचनाओं का विदेशी भाषा में अनुवाद हुआ ।
उद्घाटन सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो• अवधेश प्रधान सर का बेहद ही सारगर्भित व्याख्यान हुआ । उन्होंने बताया कि कबीर के समस्त पद्यों का जब हम अध्ययन करते है तो देखते है कि उनके यहाँ सबसे ज्यादा ‘सुनो’ शब्द का प्रयोग हुआ है क्योंकि सुनना ही सबसे महत्वपूर्ण है । उन्होंने बताया कि इस वैश्विक महामारी महामारी कोरोना से करुणा ही समस्त मानव जाति को बचा सकती है ।
आज दूसरे सत्र के “कबीर और आज के सवाल” विषयक व्याख्यान में डॉ• वंदना चौबे जी ने बहुत ही सारगर्भित एवं शोधपरक व्याख्यान द्वारा कबीर के समाज में धर्म, समाज एवं श्रमजीवी वर्ग के अंतर के बारे में बताते हुए कबीर के श्रम एवं कबीर के साथ जुड़ी किवदंतियों को ख़ारिज किया। आज के सत्र के अंतिम वक्ता के रूप में प्रो• आशीष त्रिपाठी ने आज के दौर में पूंजीवादी व्यवस्था एवं आज के राजनैतिक हालातों पर चर्चा करते हुए इसपर कबीर की दूरदृष्टि को रेखांकित किया ।
प्रो• त्रिपाठी ने बताया कि कैसे इस विषम परिस्थिति में कबीर की सार्थकता एवं प्रमाणिकता उल्लेखनीय है, जबकि पूरा समाज आज दो धड़ों में स्पष्ट रूप से विभाजित दिखलाई पड़ता है ।इस संगोष्ठी के समापन सत्र की शुरुआत सुश्री अंजलि वर्मा के कबीर पद्य गायन से हुआ । ततपश्चात रसांगी नानायक्कार ने कबीर पद्य का गायन किया । इसके समापन सत्र में समाहार वक्तव्य में प्रो मणीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा कि अब पूंजीवाद के पास अब कोई दर्शन नहीं बचा है । यह कोरोना काल विश्व के मानवीय दर्शन के संकट का समय है । उन्होंने बताया कि कबीर धर्म के आंतरिक पक्षों के आलोचक थे । प्रो• ठाकुर ने आगे कहा कि गाँधी का चरखा कबीर का दार्शनिक चरखा है, क्योंकि चरखा चलाते वक्त हम जो आत्ममंथन करते हैं वह हमें खुद से जुड़ने और हमें ऊचां उठने में मदद करता है ।
अंत में अध्यक्षीय भाषण में प्रो• शिवबहादुर सिंह ने कहा कि कबीर का दृष्टिकोण मानवतावादी चिंतन का है, वह शाश्वत प्रेम के प्रतीक है । उनके विचार आज भी प्रासंगिक है । कबीर को किसी काल के सिमा में नहीं बाँधा जा सकता । समापन सत्र का संचालन डॉ• समीर कुमार पाठक ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन का कार्यक्रम डॉ• राकेश कुमार राम ने सपन्न किया ।
18 जून 2020 को हिंदी विभाग डीएवी पीजी कॉलेज, वाराणसी में ‘सीता की खोज’ व्याख्यानमाला का तीसरा व्याख्यान आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो अवधेश प्रधान ने सीता की खोज शीर्षक सिलसिलेवार व्याख्यानमाला जिसकी शुरुआत हिंदी विभाग बीएचयू से हुई उसके तीसरे सत्र का आयोजन डीएवी पीजीकॉलेज में सम्पन्न हुआ।