डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज एवं संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 09 नवम्बर से 19 नवम्बर तक दस दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक गणितीय कार्यशाला का उद्घाटन पाणिनि कन्या महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा वेद मंत्रों के घनपाठ के उद्घोष से हुआ। उद्घाटन समारोह के अवसर पर मुख्यातिथि संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी जी ने वैदिक गणित की महत्ता व्यक्त करते हुए कहा बिना वेद के भारतीय संस्कृति अधूरी है, लौकिक जगत् का आधार वैदिक गणित ही हैं भारतीय ज्ञान परम्परा आरम्भ से ही संपूर्ण विश्व में अग्रणी रही है, नालन्दा व तक्षशिला की ज्ञान परम्परा का वैश्विक पटल पर पुनर्स्थापन करना होगा। महाविद्यालय द्वारा चलाये जा रहे वैदिक गणित षाण्मासिक प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम एवं इस प्रकार की कार्यशाला सूत्र का कार्य करेगी।
विशिष्टातिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कला संकाय, संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. उपेन्द्र पाण्डेय जी ने गणित के दो प्रकार बताते हुए कहा कि सांख्यदर्शन के लिए वैदिक गणित की आवश्यकता सर्वाधिक है। मुख्यवक्ता के रूप में पधारे वेद वाणी वितान शोध संस्थान, सतना (म0प्र0) के निदेशक प्रो. सुद्युम्नाचार्य जी ने संख्या के विकास को संसार में अभूतपूर्व घटना बताते हुए तन्निहित शक्ति मूर्त को देखकर अमूर्त के आविष्कार को उद्घाटित किया तथा अध्यक्षीय उद्बोधन महाविद्यालय के प्राचार्य आधुनिक गणित में निष्णात प्रो. सत्यदेव सिंह जी ने कहा कि वैदिक गणित द्वारा गणित के गूढ़ प्रश्नों को हल किया जा सकता है एवं गणित से भयाक्रान्त विद्यार्थियों को वैदिक गणित की सरल पद्धति द्वारा गणित को रुचिकर बनाया जा सकता है। सारस्वत अतिथि के रूप में महाविद्यालय के मंत्री/प्रबन्धक अजीत कुमार सिंह जी थे।
उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. दीपक कुमार शर्मा, स्वागत भाषण प्रो. मिश्री लाल, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, विषय प्रस्तावना विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका प्रो. पूनम सिंह तथा कृतज्ञता प्रकाशन डॉ. त्रिपुर सुंदरी ने किया। इस अवसर पर डॉ. पी.के. सेन, प्रो. सतीश कुमार सिंह, डॉ. रविकान्त त्रिपाठी, श्रीमती संध्या देवी एवं महाविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, अध्यापक, स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षा के विद्यार्थी तथा कार्यशाला में प्रतिभाग कर रहे अन्य महाविद्यालयों के प्रतिभागी उपस्थित थे। ऋतम्भरा प्रज्ञा से निःसृत ऋषियों की ज्ञान राशि के संप्रेषण, संपोषण एवं संवर्धन को लक्ष्य कर आयोजित कार्यशाला के तकनीकी सत्र के प्रथम दिवस दिनांक 09-11-2022 को मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रपति सम्मान से सभाजित प्रो. सुद्युम्नाचार्य ने अपने उद्बोधन द्वारा प्राचीन भारतीय गणित में शून्य और अनन्त की अवधारणा पर विश्वगणित पर प्रभाव दर्शाते हुए श्रुति पूर्णमदः पूर्णमिदं मंत्र द्वारा ऋषि प्रदत्त गणित को आधार प्रदान करने वाले शून्यांक की अनन्तता को बताया।
कार्यशाला के द्वितीय दिवस दिनांक 10 नवम्बर, 2022 को मुख्य वक्ता प्रो. सुद्युम्नाचार्य जी ने आर्यभट्ट के गणितीय सिद्धान्त को युग- प्रवर्तनकारी सिद्ध करते हुए उनके कतिपय गणितीय नियमों के प्रायोगिक पक्षों को उद्घाटित किया।
कार्यशाला के तृतीय दिवस दिनांक 11 नवम्बर 2022 के मुख्यवक्ता डॉ. अरुण कुमार उपाध्याय, सेवानिवृत्त, आई.पी.एस., भुवनेश्वर, उड़ीसा से अन्तर्जाल माध्यम से ब्रहमाण्डीय एवं खगोलीय माप के वैदिक सिद्धान्त की विवेचना करते हुए यह बताया कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड में चर, अचर, स्थावर जंगम सभी गणित से सम्बद्ध है सृष्टि सिद्धान्त ही गणित पर निर्भर हैं। भारतीय वैदिक गणित में ही यह क्षमता है कि किसी खगोलीय घटना की गणना हजारो वर्ष पूर्व भी की जा सकती थी। आर्षग्रंथों के कतिपय साक्ष्यों को देते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वैदिक गणित ही सौर मण्डल और नक्षत्रों की व्यवस्थित गणना करने में सक्षम रहा है। आर्यभट्ट, वाराहमिहिर एवं भास्कराचार्य के खगोलीय एवं ब्रह्मांडीय माप के सिद्धांतों एवं उनके प्रति आधुनिक वैज्ञानिक एवं नासा जैसी संस्थाओं द्वारा समानता एवं असमानता की समीक्षा किये जाने की चर्चा करते हुए भागवतपुराण, वाराहपुराण एवं ब्रह्मांडपुराण में वर्णित सिद्धांतों का प्रतिपादन तथा उनकी वर्तमान स्थिति की वैज्ञानिक परिणामों से तुलना कर वैदिक गणित की उपादेयता से अवगत कराया।
कार्यशाला के चतुर्थ दिवस दिनांक 12-11-2022 के मुख्य वक्ता गोंदिया, महाराष्ट्र के शासकीय पॉलिटेक्निक कॉल्ोज में इलेक्ट्रानिक्स एवं संचार विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रशान्त एस. शर्मा जी ने अन्तर्जाल माध्यम से वैदिक गणित के ऐतिहासिक स्वरूप से लेकर उसके विभिन्न प्रायोगिक पक्ष को प्रस्तुत करते हुए नई पीढ़ी की तकनीकी के विकास में वैदिक गणित की उपादेयता का अत्यन्त वैदुष्यपूर्ण व्याख्यान करते हुए प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया।
कार्यशाला के पंचम दिवस दिनांक 14-11-2022 के मुख्य वक्ता ज्योतिष विभाग संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के डॉ. मधुसूदन मिश्र ने 15वीं शताब्दी से पूर्व सार्वभौमिक रूप से वैदिक गणित के प्रयोग को बताते हुए आचार्य भास्कर द्वारा प्रतिपादित भू परिधि एवं अक्षांश के संबंध का गणितीय प्रतिपादन एवं वैदिक काल में प्रयुक्त छाया व्यवहार, श्रेढ़ी व्यवहार, वर्गकर्म, करणी की प्रासंगिकता का निरूपण किया। उन्होंने कहा कि वैदिक कूटांक पद्धति तथा वर्णों के माध्यम से संख्याओं के परिज्ञानपूर्वक गणित के सूत्रों के उदाहरण भी प्रदर्शित किये।
कार्यशाला के षष्ठ दिवस दिनांक 15 नवम्बर 2022 के मुख्य वक्ता वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के वैदिक गणित के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. कृष्णमुरारी त्रिपाठी जी ने भारतीय शिल्प विज्ञान एवं यंत्र विज्ञान में वैदिक गणित की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय शिल्पकला उसमें प्रदर्शित विषय भवनों की लम्बाई चौड़ाई उनकी वास्तुकला जो कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। संप्रति प्रयोग होने वाले यन्त्रीय तकनीकी से भी ज्यादा कारगर है उनका कहना था कि वर्तमान में प्रचलित आधुनिक गणित में शून्य को अभाव स्वरूप मानते हैं जबकि वैदिक गणित में शून्य को प्रथमांक माना जाता है।
कार्यशाला के सप्तम दिवस दिनांक 16 नवम्बर 2022 को अन्तर्जाल माध्यम से सम्बद्ध ज्योतिष विभागाध्यक्ष केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जम्मू के विद्वान प्रो. श्याम देव मिश्र जी ने स्वामी श्री
कृष्णतीर्थ जी द्वारा प्रदत्त वैदिक गणित के सूत्रों का आंग्लभाषानुवाद कर गणितीय संक्रियाओं का ऋणात्मक एवं योग-ऋणात्मक ज्ञान के साधन में वैदिक गणित के सूत्रों का प्रयोग करते हुए भास्कराचार्य के छायाव्यवहार को रेखाचित्र के रूप में उद्घाटित करते हुए कहा कि वैदिक गणित के निरंतर प्रयोग से प्रश्नों का हल शीघ्र ही मिल जाता है एवं छात्रों के मानसिक विकास के लिए यह छोटे-छोटे सूत्र अत्यन्त उपयोगी है।
कार्यशाला के अष्टम दिवस दिनांक 17 नवम्बर, 2022 के वक्ता युवा विद्वान् वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से श्री आदित्य राज पाठक ने वैदिक गणित सूत्रों के प्रायोगिक पक्षों का उद्घाटन व्याहारिक रूप में अत्यन्त रोचक ढंग से प्रतिस्थापित करते हुए अनेक उदाहरणों के माध्यम से वैदिक गणित की यंत्रीय उपयोगिता को सिद्ध किया।
कार्यशाला के नवम दिवस दिनांक 18 नवम्बर, 2022 के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय आदर्श वेद विद्यालय के प्राध्यापक, महर्षि सान्दीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन से वैदिक गणित के युवा एवं अधिकारी विद्वान् डॉ0 आयुष शुक्ला जी ने अन्तर्जालीय माध्यम से अपने वक्तव्य द्वारा उद्बोधित करते हुए कहा कि वैदिक गणित से विद्यार्थियों के नैसर्गिक बौद्धिक क्षमता का विकास तीव्रता से होता है। इस गणित में जो पद्धतियाँ प्राप्त हैं वह पूर्णतया वैज्ञानिक तथा मनोरंजक हैं। उन्होंने गणितीय संक्रियाओं गुणन, वर्गमूल, भिन्न आदि के लिए वैदिक मन्त्र्ाों के साक्ष्य देते हुए उनके अनुप्रयोगांे को रोचक एवं सरलतम रूप में व्याख्यायित किया तथा प्रतिभागियों के प्रश्नांे का त्वरित समाधान करके आश्चर्य चकित कर दिया।
दस दिवसीय कार्यशाला का अन्तिम तकनीकि-सत्र्ा दिनांक 19 नवम्बर, 2022 को वक्ता के रूप में डॉ0 एस0एल0 मौर्य वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उपस्थित होकर बोधायन त्र्ािक की अवधारणा के गूढ़ार्थ का स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि भारतीय विद्याआंे में वैदिक गणित के तकनीकी द्वारा अत्यन्त दुरूह एवं जटिल प्रश्नांे का समाधान अत्यल्प समय मंे प्राप्त किया जा सकता है जो कि प्रतियोगी परीक्षाआंे की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है इन्हांेने अपने वक्तव्य से छात्र्ाों को वैदिक-गणित की अत्यन्त सूक्ष्मतम विश्ोषताओं से प्रतिभागियों को अवगत कराया तथा प्रत्येक भारतीय को इस उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त करने तथा उसके द्वारा लाभान्वित होने के लिए आग्रह किया साथ ही भविष्य मंे वैदिक-गणित का अन्य किन क्ष्ोत्र्ाों में उपयोग किया जा सकता है इस ओर भी प्रतिभागियों का ध्यान आकृष्ट किया।
दिनांक 21-11-2022 को दस दिवसीय वैदिक गणित राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन वैदिक गणित प्रमाणपत्र्ाीय पाठ्यक्रम के लोकर्पण के साथ हुआ। इस सत्र्ा के मुख्यातिथि के रूप में महर्षि पाणिनि संस्कृति एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन (म0प्र0) के कुलपति प्रो0 विजय कुमार सी.जी. रहे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को किस प्रकार से विकृत किया गया, कौन-कौन सी वह विद्याएँ थीं, जिनके बल पर पूरा विश्व भारत की ओर ज्ञान-पिापासा की पूर्ति के लिए निहारता था। इस विषय पर प्रकाश डालते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि आज भारतवर्ष की प्रत्येक संस्था में इस देश की मूल प्राच्यविद्याओं से सन्दर्भित 01 प्रश्नपत्र्ा अथवा पाठ्यक्रम अनिवार्य रूप से होना चाहिए। वैदिक गणित प्रमाणपत्र्ाीय पाठ्यक्रम के लोकार्पण के अवसर पर उन्हांेने महाविद्यालय के प्राचार्य महोदय तथा संस्कृत विभाग के प्रति अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त करते हुए कहा कि यह पाठ्यक्रम वैदिक-गणित के क्ष्ोत्र्ा में कीर्तिमान स्थापित करेगा।
इस अवसर पर सत्र्ा के मुख्यवक्ता प्रो0 पतंजलि मिश्र, वेदविभागाध्यक्ष, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने कहा कि सृष्टि के प्रारम्भ से ही गणितशास्त्र्ा की उपयोगिता पर फ्रकाश डालते हुए कहा कि वैदिक-गणित के माध्यम से मात्र्ा बौद्धिक-स्तर ही नहीं अपितु चारित्र्ािक श्रेष्ठता को भी छात्र्ा प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्र की मूलभूत सम्पत्ति होती है वहाँ के निवासियों का चरित्र्ा सत्यता, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा तथा राष्ट्रª के प्रति समर्पण उपर्युक्त समस्त संस्कार प्रदान करना शिक्षण संस्थाओं का दायित्व है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम वास्तविक श्ौक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आधारभूत हैं।
विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रो0 उपेद्र कुमार त्र्ािपाठी, समन्वयक, वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि वैदिक संहिताओं में वर्णित गणित के मूल स्रोतों का परिचय प्रदान करते हुए प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया।
महाविद्यालय के उप-प्राचार्य प्रो0 सतीश सिंह ने अपने उद्बोधन मंे सभी विभागों के छात्र्ाों से वैदिक-गणित को सीखने की अपील करते हुए कहा कि हमें अपने मूल की ओर लौटना होगा, अपनी ज्ञान-परम्परा को सुदृढ़ बनाना होगा।
अतिथि स्वागत प्रो0 पूनम सिंह ने किया। कार्यशाला का प्रतिवेदन डॉ0 दीपक कुमार शर्मा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष प्रो0 मिश्री लाल ने किया। इस सत्र्ा का संचालन डॉ0 रविकांत त्र्ािपाठी ने किया।
इस दस दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक-गणित कार्यशाला में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसर, जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी, कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक, महाराष्ट्र सोवन सिंह जीना विश्वविद्यालय, हल्द्वानी, उत्तराखण्ड, महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय, उज्जैन (म0प्र0), छत्र्ापति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (उ0प्र0), श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, वेरावल, गुजरात, नालन्दा विश्वविद्यालय, राजगीर, बिहार समेत सम्पूर्ण भारतवर्ष से अनेक प्रान्तों से अनेक महाविद्यालयों से 153 प्रतिभागियों ने प्रतिभागिता की।
अत्यन्त गौरवास्पद है कि इन प्रतिभागियों मंे सर्वाधिक संख्या आचार्यों की रही।
इस कार्यशाला का लक्ष्य छात्र्ाों को भारतीय विद्याआंे की ओर आकृष्ट करते हुए विश्ोषतः वैदिक-गणित के क्ष्ोत्र्ा, उसकी उपयोगिता तथा वर्तमान परिदृश्य में उसके अनुप्रयोग एवं भारतीय प्राच्यविद्याआंे मंे अनुसंधान की नूतन दिशा प्रदान करने का था। प्रतिभागियों की प्रतिपुष्टि को देखते हुए अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है कि संस्कृत-विभाग, डी.ए.वी.पी.जी. कॉल्ोज, वाराणसी इस कार्यशाला के परिणाम से तुष्ट है तथा इसका वास्तविक परिणाम समस्त प्रतिभागियांे के मन-मस्तिष्क में स्थापित है इसकी समीक्षा हम उन्हीं के कर-कमलों मंे समर्पित करते हैं।
संस्कृत विभाग के तत्वावधान में बंगलूरु कर्नाटक से आयी  सावित्री राव एवं  उनकी सहयोगिनी विदुषियों ने श्री शंकरभगवतपाद विरचिता सौंदर्य लहरी का महाविद्यालय में संस्कृत भाषा एवं अन्य  जिज्ञासु छात्रों को सस्वर पाठ करवाया एवं  स्त्रोत पाठ हेतु हम सभी को 27 मार्च 2022  का आमंत्रण भी दिया, और भगवान श्री शंकराचार्य जी के भव्य स्वरूप को भेंट किया |  श्रृंगेरी मठ की ओर से संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में 27 मार्च को आयोजित सौंदर्य लहरी स्तोत्र पाठ में पीएम मोदी भी शामिल होंने की संभावना है| राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीर्ष संघचालक मोहन भागवत भी जनआस्था से जुड़े आयोजन में शामिल होंगे। इस खास अनुष्ठान में देश भर से दस हजार से अधिक साधु-संत, बटुक व वैदिक ब्राह्मण जुट रहे हैं।
दयानन्दस्नातकोत्तर महाविùालयस्य संस्कृतविभाग पक्षतः विंशत्यधिकद्विसहस्त्रतमे वर्षे (2020)मई मासस्य एकादश दिनांकतः विंशतिदिनांकं ( 11दृ20 ) यावत् एका विशिष्टा वेविनार कार्यशाला आयोजिता। कार्यशालायां जीवने संस्कृतस्योपादेयता विषयोपरि वक्तारः स्व स्व व्याख्यानं अयच्छछन्।

डॉ. डी.पी. सिंह, अध्यक्ष, यू.जी.सी.

तस्मिन कार्यक्रमे प्रथमदिवसे मुख्यातिथयः सोमनाथसंस्कृतविश्वविùालस्य कुलपतयः प्रोÛ गोपबन्धु महोदयाः यन्नेहास्ति न तत्क्वचिदित्युत्वा अस्याः सौष्ठवं उक्तवन्तः यत् इमां भाषां विना विश्वमान्यां वेदोपनिषदां गीतादिग्रन्थानां च मौलिकं स्वाध्यायं कर्तुं प्रभवामो येषां संसारस्य सर्वेष्वपि सभ्यदेशेषु सुमहान प्रचारः समादरश्च वर्तते भारतीयत्वस्य हिन्दुत्वस्य वा ज्ञानाय तु सर्वतः पूर्वं संस्कृताध्ययनं नित्तान्तमेवावश्यकं वर्तते। अस्माकं भेषभूषा आचारव्यवहाररीतयोनीतयश्च भारतीयसंस्कृतेः अनुरूपाः स्युः तथा आचरणीयम् इति।
तत्रैव विशिष्टातिथयः काशीहिन्दूविश्वविùालयस्य कलासंकायस्य संस्कृतविभागस्य अध्यक्षाः प्रोÛ उमेशसिंह महोदयाः नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विùते। इत्यधिकृत्य सर्वं ज्ञानं संस्कृताधीनं तच्च संस्कृतभाषां विना नोपलभ्यते।यतः संस्कृतभाषा विश्वस्य सर्वासु भाषाासु प्राचीनतमा सर्वाेत्तमसाहित्यसंयुक्ता संस्कृतभाषाया उपयोगिता एतस्मात् कारणाद् वर्तते एषैव सा भाषाऽस्ति । सस्कृतभाषैव भारतस्य प्राणभूता भाषास्ति। एषैव समस्तं भारतवर्षमेकसूत्रे बध्नाति। भारतीयगौरवस्य रक्षणाय एतस्याः प्रचारः प्रसारश्च सर्वैरेव कर्तव्यः।

प्रो गोपबंधु मिश्रा

मुख्यातिथयः विश्वविùालयानुदानायोगस्य अध्यक्षाः प्रोÛ धीरेन्द्रपाल सिंह महोदयाः संस्कृते सकला कला इति उक्त्वा संस्कृत भाषायाः का आवश्यकता एवं च किदृशी भाषास्ति अस्याः किं प्रयोजनम् अन्यान्य वैशिष्ट्यं दत्वा अस्या भाषायाः गौरवं प्रोक्तवन्तः तथा च उक्तवन्तः यùपि भूमण्डलस्य विभिन्नासु संस्कृतग्रन्थानाम् अनेके अनुवादाः प्रकाशिताः सन्ति तथापि यथामूलग्रन्थानाम् अध्ययने इति सर्वसम्मतः सिध्दान्तः अस्ति। यथार्थज्ञान तु दूरे तिष्ठतु अनुवादकानां वुध्दिभेदात् विचारभेदात् अज्ञानात् अर्थपरिवर्तनाद्वा पदे पदे भ्रान्तिरेव जायते।
तत्रैव विशिष्टातिथयः काशीहिन्दूविश्वविùालयस्य संस्कृतविùाधर्मविज्ञान संकायस्य अध्यक्षचराः प्रोÛ बालशास्त्रि महोदयाः समस्ताकृतिः संस्कृतं संस्कृतेन विना संस्कृतं भारतं भारतन्न इत्युक्त्वा विषयस्य महिमानं वर्णितवन्तः।
तै उक्तं संस्कृतशिक्षा नकेवलं सास्कृतिकैतिहासिकपरम्परागतादिविषयानेव बोधयति अपितु संस्कारप्रदानपुरस्सरं जनानां चरित्रनिर्माणोऽपि साहाय्यं करोति। नीतिशास्त्रधर्मशास्त्रश्रीमद्भगवद्गीताप्रभितिषु संस्कृतग्रन्थेषु प्रतिपदं नैतिकतायाः शिक्षणं क्रियते। संस्कृतभाषा वैज्ञानिकी भाषाऽपि वर्तते।भाषायां प्रवाहरूपेण शोधकार्यं भवति वेदानां कथनमधिकृत्य वैज्ञानिकाः नवीनयन्त्राणां निर्माणं कुर्वन्ति। तत्रोपस्थिताः अन्येऽपि विद्वान्सः प्रोÛ ब्रजभूषण ओझा वर्याः प्रोÛ यामिनीभूषणाः प्रोÛ ताराशंकरशर्म महाभागाः विषयोपरि स्वं स्वं विशिष्टं व्याख्यानं प्रस्तुतवन्तः।
शास्त्रचतुष्टयी विशिष्ट व्याख्यानमाला का शुभारम्भ वाराणसी डी.ए.वी.पी.जी. कालेज के संस्कृत विभाग के तŸवावधान में व्याकरण, दर्शन एवं साहित्य विषय पर 15 दिवसीय शास्त्रचतुष्टयी विशिष्ट व्याख्यान माला का विशिष्ट प्रयोजन न्ळब् नेट प्रतियोगिता को मद्दे नजर रखते हुए इस व्याख्यान माला का शुभारम्भ हुआ। पहले दिन कलकŸाा विश्वविद्यालय के एसोसिएट डॉ0 नीरज भार्गव ने कारक, समास विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि संस्कृत साहित्य में जब तक व्याकरण को नहीं समझ पाएगें संस्कृत समझना कठिन हैं उन्होेंने कहा कि संस्कृत न केवल ऋषियों की वाणी हैं अपितु यह सृष्टि का आधार हैं और यह अनादि काल की भाषा हैं। अगले दिन शासकीय संस्कृत महाविद्यालय देवेन्द्रनगर पन्ना मध्य प्रदेश के डॉ0 नीरज शर्मा ने संधि तद्धित, स्त्री प्रत्यय-विषय पर महŸवपूर्ण तथ्यों से प्रतिभागियांे को अवगत कराये। वहीं केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ0 मनीष शर्मा ने लघु-सिद्धान्त कौमुदी, कृदन्त, स्त्री, प्रत्यय एवं महाभाष्य पस्पशाह्मिक विषय पर व्याख्यांन देते हुए कहा है कि व्याकरण उतना भी कठिन नहीं हैं। जितना लोग कहते हैं व्याकरण निरन्तर अध्ययन-अध्यापन करने से विषय सरल हो जाते हैं। इसी क्रम में धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय संस्कृत विद्याधर्म विज्ञान संकाय, मीमांसा मर्मज्ञ प्रो0 जनार्दन रटाटे ने अर्थसंग्रह-धर्म, भावना, विधि, अर्थवाद विषय पर अपना विचार व्यक्त किये। इसके अलावा वेद विभागाध्यक्ष सनातन धर्म आदर्श संस्कृत महाविद्यालय डोहरी जिला ऊना हिमाचल प्रदेश के डॉ0 कृष्ण मोहन पाण्डेय ने प्रतिभागियों को संस्कृत वाबमय में प्रतिपादित रससिद्धान्त विषय पर छात्रों को व्याख्यान दिये। वहीं साहित्य पर संस्कृत विभाग डी.ए.वी.पी.जी. कालेज देहरादून, उŸाराखण्ड के डॉ0 रामविनय सिंह ने संस्कृत वाबमय में प्रतिपादित ध्वनि-तŸव पर व्याख्यान देते हुए इस सिद्धान्त व आचार्य अभिनवगुप्त द्वारा प्रतिपादित ध्वनिवाद के गुढ़ रहस्यों से प्रतिभागियों को अवगत कराये। कार्यक्रम के संयोजक विभागाध्यक्ष डॉ0 मिश्रीलाल नेस्वागत एवं डॉ0 पूनम सिंह ने संचालन किया। इस अवसर पर डॉ0 रविकान्त त्रिपाठी, डॉ0 सुषमा जायसवाल डॉ0 चन्द्रकला सिंह एवं छात्रगण, अन्य विद्यालयों से भी बड़ी संख्या में अध्यापक- अध्यापिका, शोधच्छात्र, परास्नातक, स्नातक के विद्यार्थी जुड़े रहे। इस शास्त्रचतुष्टयी विशिष्ट व्याख्यानमाला का मुख्य उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए विद्यार्थियों को तैयार करना हैं, व्याख्यानमाला में किस विषय को कैसे पढ़े कितना पढ़े, इस सम्बन्ध में जानकारी भी दी गई। इस कार्यक्रम के संचालन कर्Ÿाा से कहा कि वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं में जटिल व गहन अवधारणाओं से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं छात्रों के भावी जीवन व कठिन विषयों के लिए कैसे तैयार करें। छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए विषय-वस्तु को रूचिकर कैसे बनाया जाए इस पर श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण किया गया और विषय विशेषज्ञांे के दृष्टिकोण और वास्तविक जीवन की प्रेरणाएँ आदि शामिल किया गया जिसमें विषय विशेषज्ञांे के द्वारा विद्यार्थियों के विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। भारतवर्ष में 70ः जनसंख्या युवाओं की हैं, किन्तु आज का शिक्षित युवक अपनी प्राचीन संस्कृत विषय ज्ञान-विज्ञान व उपलब्धियों से अनभिज्ञ है उसमें साहस व आत्मविश्वास की कमी हैैं। आज के वैज्ञानिक और तकनीकी युग में भारतीय संस्कृत शास्त्रों को मजबूत बनाया जाए।
इस दृष्टि से प्रयास हैं कि उच्च शिक्षित युवा वर्ग एवं युवा अध्यापक, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, विद्यार्थी इत्यादि व्याख्यानमाला के सम्पर्क में आए, इस विचारधारा को समझे एवं इससे जुड़े। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए डी.ए.वी.पी.जी. कालेज में शास्त्रचतुष्टयी विशिष्ट व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया इस शास्त्रचतुष्टयी व्याख्यानमाला का मुख्य उद्देश्य संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति के मुख्य आयामों से तथा संस्कृत के क्षेत्र में हो रहे निरन्तर नए शोध से विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षको को परिचित करवाया जाए और सभी भारतीय भाषाओं के लिए संस्कृत ही अन्तः प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज भी इन भाषाओं का पोषण और संवर्धन संस्कृत द्वारा होता है। संस्कृत की सहायता से कोई भी उŸार भारतीय व्यक्ति तेलगू, कन्नड़, उड़िया, मलयालम आदि दक्षिण एवं पूर्ण भारतीय भाषाओं को सरलतापूर्वक सीख सकता हैं, भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, चरित्रवान नागरिकों के निर्माण, सद्भावनाओं के प्रसार प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति, मौलिक चिन्तन की प्रेरणा एवं विश्व शान्ति हेतु संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन अवश्य होना चाहिए।