प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग , डी. ए. वी. पी. जी. कॉलेज के तत्त्वावधान में आयोजित नव प्रवेशी छात्र/छात्राओं (यू. जी .एवं पी. जी ) के लिए एक पाठ्यक्रम पुनश्चर्या का आयोजन दिनाँक – 25/01/2023 को किया गया। जिसमें प्रा. भा. इ. संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर सुमन जैन जी का सानिध्य एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्रोफेसर सत्य गोपाल जी ने किया। संचालन डॉ. सीमा , स्वागत वक्तव्य प्रोफेसर प्रशांत कश्यप , धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनीषा सिंह ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के उप – प्राचार्य प्रोफेसर समीर पाठक की उपस्थिति के साथ साथ अन्य विभागीय एवं महाविद्यालय के सहयोगी डॉ. संजय सिंह , डॉ. ओम प्रकाश कुमार एवं डॉ. ज्योति सिंह , डॉ. विश्रुत द्विवेदी, की भी उपस्थिति रही।
दिनांक 26/02/2022 को प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यानमाला के अंतर्गत IIT , GANDHINAGAR के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ वी एन प्रभाकर ने “Harappan Bead manufacturing Technology” पर अपना विशिष्ट व्याख्यान प्रस्तुत किया I
घोड़े से परिचित थे सिंधु-सरस्वती सभ्यता के लोग: प्रो पी.पी.जोगलेकर
डी ए वी पी.जी. कॉलेज में चल रहे विशिष्ट व्याख्यान माला प्रचार्य आदरणीय डॉ सत्यदेव सिंह सर की प्रेरणा से अबाध रूप से संचालित हो रही है।प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, डी ए वी पी जी कॉलेज द्वारा दिनाँक 05/03/2022 को “हड़प्पा सभ्यता में पशु” नामक विषय पर विशिष्ट व्याख्यान प्रो. पी.पी.जोगलेकर द्वारा दिया गया जिसमें उन्होंने सिंधु-सरस्वती सभ्यता से सम्बंधित पशु पक्षियों पर किये गए अपने विशिष्ट कार्य पर प्रकाश डाला । आज का व्याख्यान प्रो पी पी जोगलेकर ने अपने गुरु आदरणीय प्रो पी के थॉमस को उनके जन्मदिन के अवसर पर समर्पित किया ।इस व्याख्यान में उन्होंने बताया कि 1931 में सर्वप्रथम भारत मे जानवरों की हड्डियों का अध्ययन शुरू हुआ । इसी के साथ सिंधु सरस्वती सभ्यता से संबंधित अनेक पुरास्थलों जैसे बहोला, भीराना, बुर्ज, फरमाना, मसूदपुर, राखीगढ़ी, शिकारपुर,करसोला, कुणाल, रोपड़, कर्णपुरा और कुन्ताशी आदि पुरास्थलों से प्राप्त जानवरो की हड्डियों के अध्ययन से प्राप्त तथ्यों को उद्घाटित किया । प्रो जोगलेकर ने अवगत कराया कि हड़प्पा सभ्यता में वर्तमान समय के लगभग सभी जानवर उपस्थित थे । ये जानवर जंगली व पालतू दोनों प्रकार के थे । इन जानवरों से वे अपने दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करते रहे होंगे। सिंधु सरस्वती सभ्यता के संदर्भ में परिपक्व हड़प्पा के शिकारपुर व कुन्ताशी से प्रो जोगलेकर को अध्ययन के फलस्वरूप घोड़े के साक्ष्य प्राप्त हुए जो भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जो सीमित अवस्था मे उपयोग किये जाते थे। चर्चा के क्रम में उन्होंने बताया कि बहुत संभव है कि भविष्य में उत्खनन से इस संदर्भ में और प्रकाश पड़े। इसके अतिरिक्त गैंडा के प्रमाण भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जो हड़प्पा सभ्यता के अलावा भारत के लगभग सभी क्षेत्रो से उस काल मे प्राप्त होते थे जैसे गंगा घाटी व उड़ीसा आदि। इस कार्यक्रम का संचालन डा मनीषा सिंह जी द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ मुकेश सिंह जी द्वारा किया गया। इस अवसर पर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ प्रशांत कश्यप, डॉ सीमा और डॉ ओमप्रकाश कुमार उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में शिक्षकों , शोधार्थियों व छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया एवं कई बिंदुओं पर प्रो जोगलेकर से चर्चा की।
शैल चित्रकला से उद्घाटित होती है समाजिक जीवन जीने की पद्धति : प्रो वी एच सोनवने
डी ए वी पी.जी. कॉलेज में चल रहे विशिष्ट व्याख्यान माला प्रचार्य आदरणीय डॉ सत्यदेव सिंह सर की प्रेरणा से अबाध रूप से संचालित हो रही है।प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, डी ए वी पी जी कॉलेज द्वारा दिनाँक 12/03/2022 को “भारतीय शैल चित्रकला की झलक” नामक विषय पर विशिष्ट व्याख्यान प्रो. वी एच सोनवने द्वारा दिया गया जिसमें उन्होंने भारतीय शैल चित्रकला पर किये गए अपने विशिष्ट कार्य पर प्रकाश डाला । इस व्याख्यान में उन्होंने बताया कि शैल चित्रकला दक्षिण में केरल से उत्तर में लद्दाख के झन्स्कर घाटी और पश्चिम में गुजरात से पूर्व में मणिपुर तक के विस्तृत क्षेत्र में फ़ैले हुए हैं 1इसमे ब्रुज़िन्ग, एन्ग्रविन्ग और पेंटिंग तकनिकी का इस्तेमाल किया गया है और प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है I ये चित्रकला ना केवल चट्टानों पर बल्कि शुतुरमुर्ग के अण्डों पर भी इस प्रकार की चित्रकला प्राप्त होती है, ये चित्रकला निम्न पुराप्रस्तर काल से ऐतिहासिक काल तक प्राप्त हुए हैं, इनसे हमें तत्कालीन समाज की झांकी देखने को मिलती है उद्घाटित किया । इस कार्यक्रम का संचालन डा मुकेश कुमार सिंह द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ ओम प्रकाश कुमार द्वारा किया गया। इस अवसर पर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ प्रशांत कश्यप, डॉ सीमा और डॉ मनीषा सिंह उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में शिक्षकों , शोधार्थियों व छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया एवं कई बिंदुओं पर प्रो सोनावने जी से चर्चा की।
जलवायु के क्रमिक परिवर्तन से हुआ था हड़प्पा सभ्यता के नगरों का पतन — डॉ कैमेरान पेट्री
डी ए वी पी.जी. कॉलेज में चल रहे विशिष्ट व्याख्यान माला प्रचार्य आदरणीय डॉ सत्यदेव सिंह सर की प्रेरणा से अबाध रूप से संचालित हो रही है।प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, डी ए वी पी जी कॉलेज द्वारा दिनाँक 24/03/2022 को “क्या जलवायु परिवर्तन सिंधु नगरीकरण के विनाश का कारक था?” नामक विषय पर विशिष्ट व्याख्यान, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, युनाइटेड किंगडम के ख्यातिलब्ध पुरातत्विद डॉ कैमेरान पेट्री द्वारा दिया गया l डॉक्टर कैमेरान पेट्री ने बताया कि वैज्ञानिक अध्ययनों से यह प्रमाणित हो चुका है की 2200 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व के मध्य लगभग दो सौ वर्षों तक मानसून भयंकर रूप से बहुत कम हो गया। जलवायु के अचानक परिवर्तन से हड़प्पा के विभिन्न पुरास्थलों का पतन दिखाई देता है।सैटेलाइट इमेज से यह ज्ञात हुआ है कि इसी समय इस सभ्यता का स्थानांतरण सिंध पाकिस्तान के क्षेत्र से गुजरात, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के क्षेत्रों में हुआ। चर्चा के क्रम में पेट्री ने बताया कि पुरातात्विक स्थलों का संकेद्रण बड़ी नदियों के किनारे न होकर इन नदियों के चैनलों के किनारे था। डॉक्टर पेट्री ने यह निष्कर्ष हरियाणा और राजस्थान के विविध पुरास्थलों जैसे मसूदपुर,लोहारी राघो, डब्ली वास चुगता तथा आलमगीरपुर से प्राप्त किए सैंपल के आधार पर प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम का संचालन डा मनीषा सिंह द्वारा किया गया तथा स्वागत एवं परिचय डा मुकेश कुमार सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डॉ ओम प्रकाश कुमार ने किया। इस अवसर पर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ प्रशांत कश्यप, डॉ सीमा उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में शिक्षकों , शोधार्थियों व छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया एवं कई बिंदुओं पर कैमेरान पेट्री से चर्चा की